The history of JAY and VIJAY who are the द्वारापालक(gatekeepers) of Bhagawan Vishnu ji's "VAIKUNTHA"(बैकुंठ) :
जय और विजय नामक दो व्यक्ति भगवान विष्णु जी के बैकुंठ के द्वारपाल है। इन दोनों का इतिहास बहुत बड़ा है। और बड़ा ही रोचक है। आपको भी इसे पढ़ना चाहिए और दूसरों को बताना चाहिए।
जय और विजय बैकुंठ के द्वारपाल कैसे बने:
जय और विजय श्रीधर नामक ब्राह्मण के पुत्र थे। जय और विजय हमेशा धर्म के नाम पर पैसा इकट्ठा करते थे और एक बार सनकादिक मुनी(यह सनक,सनन्दन,सनातन और सनत्कुमार नामक चार मुनी है जो भगवान ब्रह्मा जी के पुत्र है) स्नान कर रहे थे तो जय और विजय ने उनके वस्त्र चुरा लिया। तब सनकादीकोंने उन दोनों को भगवान विष्णु जी का द्वादश अक्षर मंत्र दिया
। उसे मंत्र के प्रभाव से जय और विजय भगवान विष्णु जी के कठोर आराधना करते रहे और उन्होंने बैकुंठ को प्राप्त कर लिया। और वहां द्वारपाल हो गए। तो एक बार सनकादिक मुनीयोने भगवान विष्णु जी से मिलने के लिए वैकुंता आ गए तो बैकुंठ के द्वार पर जय और विजय द्वारपाल के रूप में दिखे। जय और विजय ने सनकादिक मुनियों को अंदर जाने को नहीं दिया। उनके बार-बार अनुरोध करने के बाद भी जय और विजय ने उनको अंदर जाने के लिए नहीं दिया। तब सनकादीक मुनियों ने जय और विजय को श्राप दिया।
सनकादिक मुनियों ने क्या श्राप दिया:
सनकादिक मुनीयोने जय विजय को ऐसा श्राप दिया उससे जय और विजय दोनों चिंता में पड़ गए। सनकादिक मुनीयोने श्राप दिया कि अगले तीन जन्मोमे तुम दोनों भगवान विष्णु जी के हाथों मारोगे। यह सुनकर भयभीत जय विजय उनके पैरों में गिरकर क्षमा मांगने लगे।
भगवान विष्णु जी को पता चला कि ऋषिगण भेंट करने आए हैं। तो उनके स्वागत के लिए स्वयं भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी एवं अपने समस्त पार्षदों के साथ उनके स्वागत के लिए पधारे भगवान विष्णु ने उनसे कहा है मुनीश्वरों यह जय और विजय नाम के मेरे पार्षद है इन दोनों ने अहंकार बुद्धि को धारण कर आपका अपमान करके अपराध किया है आप लोग मेरे प्रिय भक्त हैं और इन्होंने आपकी अपमान करके मेरी भी अपमान की है इनको शाप देकर अपने उत्तम कार्य किया है इन अनुच्छेदों ने तपस्वियों का तिरस्कार किया है और उसे मैं अपना ही निरंतर मानता हूं मैं इन परिषदों की ओर से क्षमा याचना करता हूं सेवकों का अपराध होने पर भी संसार स्वामी का ही अपराध मानता है अतः मैं आप लोगों की प्रसन्नता की भिक्षा चाहता हूं।
यह सुनकर ऋषियों का क्रोध शांत हो गया और उन्होंने कहा हम क्रोध में आकर इन पार्षदों को शाप दिया है इसलिए हम क्षमा चाहते हैं आप उचित समझे तो इन द्वारपालो को क्षमा करके हमारे श्राप से मुक्त कर सकते हैं।
भगवान विष्णु जी ने कहा अगर मैं इनका श्राप माफ कर दु, तो यह ब्राह्मणों का वचन सत्य होगा और यह धर्म का उल्लंघन है आपने जो श्राप दिया है वह मेरी ही प्रेरणा से हुआ है यह तीन जन्म असुर योनि में प्राप्त करेंगे और तीनों बार में स्वयं इनका संघार करूंगा। मेरे द्वारा इनका संघार होने के बाद भी वह इस धाम में वापस आ जाएंगे
जय और विजय तीन जन्मों तक असुर योनि में जन्म लिया:
१) सतयुग में हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष इन दोनों असुर में जन्म लिया विष्णु जी ने वराह अवतार और नरसिंह अवतार लेकर उनका संहार किया।
२) त्रेता युग में रावण और कुंभकरण इन दोनों असुर में जन्म लिया और विष्णु जी ने श्री राम जी का अवतार लेकर इनका संहार किया।
३) द्वापर युग में शिशुपाल और दंतवक्र यह दोनों ने जन्म लिया और इनका वध श्री विष्णु जी का श्री कृष्ण अवतार से वध हुआ।
Because of a small mistake of Jain Vijay today we are getting this much knowledge from Ramayana, Mahabharata
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